ग़ज़ल कैसे लिखते हैं? – सबक २ | ग़ज़ल कैसे लिखें | ग़ज़ल लिखना सीखें

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पिछले ब्लॉग में हम ने उर्दू काव्य शास्त्र से संबंधित कुछ बुनियादी शब्दों को जाना; अब मैं ये मान के चलता हूँ कि पिछले पाठ में सिखाई बुनियादी बातों को आप समझ चुके हैं। तो आगे बढ़ते हुए मैं आज ‘ग़ज़ल’ और ‘बहर’ पर चर्चा करूँगा, तो चलिए देखते हैं ‘ग़ज़ल’ क्या है और इसमें ‘बहर’ के क्या मायने हैं– “एक ही बहर, रदीफ़ और हम-क़ाफ़िया के साथ लिखे अश'आर (शेर का बहुवचन) का समूह ही ग़ज़ल है।” *रदीफ़ और क़ाफ़िया को हम पिछले पाठ में समझ चुके हैं। *बहर को समझने के लिए चलिए पहले ग़ज़ल से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें/शर्तें  देख लेते हैं जिन्हें तरतीब से मिलाकर ग़ज़ल तैयार होती है– 1.) मतला : ये ग़ज़ल का पहला शेर होता है। इसकी ख़ासियत ये है कि इसके दोनों मिसरों(दोनों पंक्तियों) में रदीफ़ और क़ाफ़िया होता है। ‘मतला’ के बाद आने वाले सभी शेर में सिर्फ दूसरी पंक्ति में ही रदीफ़ और क़ाफ़िया होते हैं। उदाहरण से समझें– मैं चाहता हूँ कि दिल में तिरा ख़याल न हो अजब नहीं कि मिरी ज़िंदगी वबाल न हो मैं चाहता हूँ तू यक-दम ही छोड़ जाए मुझे ये हर घड़ी तिरे जाने का एहतिमाल न हो शायर : जव्वाद शैख *इसमें "न हो"...

ग़ज़ल कैसे लिखते हैं? : सबक १ / ग़ज़ल कैसे लिखें / ग़ज़ल लिखना सीखें

दोस्तों बिना कोई लंबी-चौड़ी भूमिका बाँधे मैं ‘लेखक सुयश’ बस आपको इतना कहना चाहता हूँ कि यदि आप सारी बारीकियों को समझते हुए शायरी लिखना/कहना चाहते हैं तो बस आपको यहाँ जुड़े रहना है और जो समझाऊँ वो समझना है। ये पहला पहला पाठ है, अन्दाज़न 4-6 ब्लॉग में आप सारे बुनियादी सबक सीख जायेंगे। तो चलिए आज का सबक शुरू करते हैं–




उर्दू काव्य मुख्यतः उच्चारण आधारित है। साधारणतः हिंदी की तरह ही यहाँ भी शब्द के उच्चारण की ध्वनि को दो तरह बाँट सकते हैं –

लघु - 1 (अ,इ आदि)

गुरु - 2 (आ,ई आदि)

*उच्चारण के ध्यान से दो लघु अक्षर मिलकर एक गुरु बनाते हैं। (जैसे- ‘ज़रिया’ को तोड़कर ‘ज़रि-या’ लिखकर ये 2-2 उच्चारित होगा।)


चलिए शुरुआत कुछ ज़रूरी और बुनियादी शब्दों को समझने से करते हैं –


1.) तक़तीअ : शब्द को उच्चारण के मुताबिक (*मात्रा* में) तोड़ने को तक़तीअ कहते हैं। उदाहरण से समझें –


‘दिल-ए-नादाँ’

= दि ले ना दाँ

  1  2  2  2


2.) वज़्न : किसी शब्द के *मात्रा क्रम* को उस शब्द का वज़्न कहा जाता है। उदाहरण से समझें –


‘आधी रात’

 2  2  2 1


3.) काफ़िया : इसे सीधे तौर पर एक उदाहरण से समझना बेहतर होगा –


सारे मौसम बदल गए शायद

और हम भी सँभल गए शायद


*यहाँ, जैसा कि आप देख रहे हैं, ‘बदल’ और ‘सँभल’ rhymed हैं अर्थात् पंक्तियों में दुरुस्त क़ाफ़िया (तुक) है।


काफ़िये के भी दो भाग हो सकते हैं–

पहला ‘हर्फ़े-मुस्तकिल’ और दूसरा ‘हर्फ़े-मुतबद्दिल’ ; ख़ैर इन कठिन शब्दों को याद नहीं करना बस समझना है–


*‘हर्फ़े-मुस्तकिल’ काफ़िये का वह भाग है जो स्थायी रहता है,‌ वहीं ‘हर्फ़े-मुतबद्दिल’ बदलता रह सकता है। ऊपर के उदाहरण को लेते हैं–


*‘बदल’ और ‘सँभल’ ; यहाँ ‘ल’ हर्फ़े-मुस्तकिल है और बाकी ‘बद’ और ‘सँभ’ हर्फ़े-मुतबद्दिल हैं।


4.) रदीफ़ : आम तौर पर काफ़िये के बाद के भाग को रदीफ़ कहते हैं। जैसे कि ऊपर के उदाहरण में ‘गए शायद’ रदीफ़ है। रदीफ़ अपरिवर्तनीय होता है (जैसे कि इस उदाहरण में दोनों लाइनों में ‘गए शायद’ ज्यों का त्यों है।); इसके अलावा रदीफ़ के कोई ख़ास नियम नहीं हैं।


तो चलिए आज का सबक यहीं तक छोड़ते हैं अगले सप्ताह सबक को आगे बढ़ाएंगे। आज के पाठ को लेकर कोई सन्देह हो तो comment कर दीजिएगा।

शुक्रिया ❣️


tags : ग़ज़ल कैसे लिखे , Ghazal kaise likhte hain , ग़ज़ल कैसे लिखते हैं , ग़ज़ल की बारीकियाँ

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