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Showing posts from March, 2020

ग़ज़ल कैसे लिखते हैं? – सबक २ | ग़ज़ल कैसे लिखें | ग़ज़ल लिखना सीखें

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पिछले ब्लॉग में हम ने उर्दू काव्य शास्त्र से संबंधित कुछ बुनियादी शब्दों को जाना; अब मैं ये मान के चलता हूँ कि पिछले पाठ में सिखाई बुनियादी बातों को आप समझ चुके हैं। तो आगे बढ़ते हुए मैं आज ‘ग़ज़ल’ और ‘बहर’ पर चर्चा करूँगा, तो चलिए देखते हैं ‘ग़ज़ल’ क्या है और इसमें ‘बहर’ के क्या मायने हैं– “एक ही बहर, रदीफ़ और हम-क़ाफ़िया के साथ लिखे अश'आर (शेर का बहुवचन) का समूह ही ग़ज़ल है।” *रदीफ़ और क़ाफ़िया को हम पिछले पाठ में समझ चुके हैं। *बहर को समझने के लिए चलिए पहले ग़ज़ल से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें/शर्तें  देख लेते हैं जिन्हें तरतीब से मिलाकर ग़ज़ल तैयार होती है– 1.) मतला : ये ग़ज़ल का पहला शेर होता है। इसकी ख़ासियत ये है कि इसके दोनों मिसरों(दोनों पंक्तियों) में रदीफ़ और क़ाफ़िया होता है। ‘मतला’ के बाद आने वाले सभी शेर में सिर्फ दूसरी पंक्ति में ही रदीफ़ और क़ाफ़िया होते हैं। उदाहरण से समझें– मैं चाहता हूँ कि दिल में तिरा ख़याल न हो अजब नहीं कि मिरी ज़िंदगी वबाल न हो मैं चाहता हूँ तू यक-दम ही छोड़ जाए मुझे ये हर घड़ी तिरे जाने का एहतिमाल न हो शायर : जव्वाद शैख *इसमें "न हो"...

Irshya, tu na gayi mere mann se | ईर्ष्या , तू न गई मेरे मन से | Lekhak Suyash

ईर्ष्या , तू न गई मेरे मन से दूर जाना चाहूँ मगर  तू मेरे पास ही आती है , इस अनन्त सागर में भी मुझ नाविक से टकराती है ,  चाहता हूँ दूर हो जाये तू मुझसे  ईर्ष्या , तू न गई मेरे मन से । तेरे कारण कभी - कभी  खु़द से ही दूर हो जाता हूँ ,  तेरे कारण ही मैं  अपनों से झगड़ जाता हूँ ,  क्या पता तुझे , तक़लीफ है कितनी तुझसे ?  ईर्ष्या , तू न गई मेरे मन से । तेरे ताव़ में आकर ही  दुनिया से फेंका जाता हूँ ,  तू ही कारण है कि -  भीड़ में अकेला पड़ जाता हूँ ,  इससे अधिक कहूँ भी क्या तुझसे ?  ईर्ष्या , तू न गई मेरे मन से । अवगुणों की मेरी खान है तू  तू ही तिमिर मेरे जीवन का ,  मेरे अन्दर का अहम है तू मनुजाद है तू मेरे मन का ,  आखिर प्रगाढ़ अरि मेरे , और कहूँ भी क्या तुझसे ?  ईर्ष्या , तू न गई मेरे मन से ।                           ---  Lekhak Suyash        ...